समय केहन भेल घोर हे शिव!
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समय केहन भेल घोर हे शिव!
गोधन विपति, धरम अवनति देखि कत हिय करब कठोर॥
साधु समाज राजसँ पीड़ित अति हरषित-चित चोर।
अकुलिन लोकेँ धरणि परिपूरित कुलिन समादर थोड़॥
धरम सुनीति प्रीति ककरहु नहि, खलहिक चलइछ जोर।
कन्द-मूल-फल सेहो अब दुरलभ अन्न गेल देशक ओर॥
किछु शुभ साधन बनि नहि पड़इछ थाकल मन, मति भोर।
कह कवि चन्द्र हमर दुख मेटत होयत कृपा शिव तोर॥
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This work was published before January 1, 1930, and is in the public domain worldwide because the author died at least 100 years ago. |