न्यायक भवन कचहरी नाम
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न्यायक भवन कचहरी नाम।
सभ अन्याय भरल तेहि ठाम॥
सत्य वचन विरले जन भाष।
सभ मन धनक हरन अभिलाष॥
कपट भरल कत कोटिक कोटि॥
ककर न कर मर्यादा छोटि॥
मन कवि ‘चन्द्र’ कचहरी घूस।
सभ सहमत ककरा के दू स?
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This work was published before January 1, 1930, and is in the public domain worldwide because the author died at least 100 years ago. |